Monday, March 23, 2009

वो रेत का घरोंदा

बचपन की चाह ,वो रेत का घरोंदा ,
बिखरी हुई रेत को समेट कर बनाया घरोंदा
वो रेत का घरोंदा ।
मेरे साथ -साथ बड़ा हो गया ,
वो रेत का घरोंदा ।
बंद आखों में सहेज कर रखा है
वो रेत का घरोंदा ,
सांसो में बसा है ,
वो रेत का घरोंदा
हर pal sath रहता है बचपन में बनाया
वो रेत का घरोंदा ,
मेरे sapno में बसा है
वो रेत का घरोंदा ,
दिल के कोने मे सहेज कर रखा है ।
udasi bhare chehre पर muskraht दे jata है ,
badlti हुई दुनिया के rango मे भी aajij है
वो रेत का घरोंदा ।

Sunday, March 22, 2009

" माँ ऐसी होती है "

'प्यार से फुलाती है रोटियां ,
गुस्से मे जलाती तवे पर रोटियां ,
वे जली रोटियां ख़ुद ही खाती है
जिस पर आया था गुस्सा ,
माँ ऐसी होती है ।
उदासी में भूल जाती है
सब्जी में नमक डालना और चाय में चीनी ,
पति को दफ़तर,बच्चो को स्कूल भेजते हुए ,
वे टिफिन में रख देती है अपना दिल ,
मेहनत से बनी रोटियां का पसीना ,
वो मीठा पसीना कितना अच्छा होता है ,
रुंधे गले से चाहकर भी रोने की फुर्सत नही पा पाती ,
ऐसी होती है "माँ "