ये दोस्ती क्या होती है ?
कहाँ जन्म लेती है ,कहाँ खत्म होती है ?
उगते सूरज के साथ उसकी पहर होती है
हवाओं में संगीत के साथ उसकी भी लहर होती है ।
सांझ होते ही वो स्तंभ क्यों होती है ?
ये दोस्ती क्या होती है .......कहाँ जन्म लेती है ,कहाँ खत्म होती है ?
सीप की रोशनी अन्दर ही बंद रहती है ,
विचारो के समंदर मे सदियों से बहती हुई जिन्दगी का परिचय करती हुई ,
दोस्ती तो मोती होती है जिस पर हम जीते है ,
दोस्ती तो विश्वास होती है जिस पर हम जीते है ।
दोस्ती तो मीठी मुस्कान होती है ।
दोस्ती तो फूल की महक होती है जिस पर हम जीते है
दोस्ती तो जिन्दगी की सहर होती है
ये दोस्ती कहाँ जन्म लेती है कहाँ ख़त्म होती है ......... ।
" उन दोस्तों को जो मेरे दिल करीब है। "
5 comments:
पहले तो मैं तहे दिल से आपका शुक्रियादा करना चाहती हूँ कि आपको मेरी शायरी पसंद आई!
मुझे आपका कविता बेहद पसंद आया! बहुत ही ख़ूबसूरत कविता लिखा है आपने दोस्ती पर! सच में एक सच्चा दोस्त मिल जाता है तो ज़िन्दगी में और किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं पड़ती! दोस्ती तो जन्म जन्म का बंधन है जो कभी टूट नही सकता! बहुत बढ़िया लगा!
वाह दोस्ती पे कितनी सुन्दर कविता है ये, बहुत अछा लगा पढ़के!
अपना नाम भी बता देते तो अछा होता !
apki rachnadharmita bahut achchi lagti hai.kuch naya karte rehne ki ikchcha kabiletareef hai.vaise jeevan saurabh kavita ke upar ka phulon vala vriksh bahut pyara hai, bahut soch samajh kar lagaya hai kyun
hansti bhi hai ,muskuraati bhi hai ,pyaar ke saaz pe gungunaati bhi hai .yah saath dene me peechhe nahi ,waqt par maut se khel jaati bhi hai .
sach mere yaar hai bas wahi pyaar hai ,jiske badale me koi to pyaar de yaar mere .
bahut hi sundar .ye jazwaa hai hi khoobsurat .blog pe aane ke liye shukriyaa .
bahut shai likha hai dosti par
dosti gungunati hai sadaa agar sachi ho to
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