"वो तो खुशबू है , हवाओं मे बिखर जायेगी ,
मसला फूल का, फूल किधर जायेगा ।"(अज्ञात )
इसी हाल मे है ,शामे अवध को महकाने वाले । दूसरो को गजरे की महक देने वाले ख़ुद उसकी महक से दूर है । पहले लखनऊ के चौक ,कैसरबाग और हजरतगंज के इलाके शाम होते ही गजरों की महक से महकने लगते थे । तवायफों के कोठों पर भी वातावरण गजरों के बिना अध्रूरा रहता था । बेला ,चमेली ,जूही ,मोगरा ,कुंद ,गुलाब ,नेवारी के गजरे मुजरे और तबले की थाप के साथ तवायफों के मन मोहक डांस तथा उनके जूडे व उनके प्रेमियो के हाथ मे लिपटे गजरे रोमानियत मे चार चाँद लगा देते थे । लखनऊ के गजरे किसी वक्त अपनी महक व शोहरत के नायाब उदाहरण थे ,लेकिन अब ऐसा नही रहा। अब तो इन गजरों का चलन सिर्फ़ कुछ महिलाओं के जूडों तक ही सीमित रह गया है । हजरतगंज में गजरे बेचने वाले अरविन्द बताते है की अप्रैल से अगस्त तक बिकने वाले इन गजरों के कच्चे काम में मेहनत ज्यादा है और फायदा कम है । यदि माल बचा तो जेब अपनी ढीली होती है । गजरों की बात करे तो सालों साल पुरानी फूल वाली गली की महक को भी भुलाया नही जा सकता है । पर्यटन विभाग जैसे नबाबी सवारी इक्का ,बग्घी को प्रोत्साहित करता है ,उसी तरह गजरे बेचने वालों को भी प्रोत्साहित करे तो गजरे की महक को फ़िर से ताजा करने में बेहतर कदम साबित होगा ।
जब तक सरकारी तंत्र कुछ करे तब तक हम लोग ही अपनों को गजरे भेंट कर अपने स्तर से ही प्रोत्साहित कर सकते है। वैसे भी बरसात का मौसम रोमानियत व फूलों का मौसम माना जाता है जिसमे कजरी के गीत हो जाए तो .......फ़िर बात ही क्या ....अब देर किस बात की शाम - ए - अवध की महक आपके इंतजार में की आप आए और अपने चाहने वाले के लिए अवध की महक उसके नाम कर दे ।
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----एलिस हॉफमैंन
6 comments:
Pahli bar apka sam-a-awadh ki mahak ka lekh pda bhut achchha laga.Realy very good.
आप की बात एकदम सही है....
वाकई में बहुत ही अच्छी मेहक है अरुण जी. बिलकुल सही लगी आपकी बात.
is shame awadh ki mahak ne purane lko ki mahak ki yad dila di. good.
arun ji achi bat akhi bachana hoga isko..apna bachapan yaad aa gya jo lko me mene bitaya tha
very nice sir....yaha aaker kaphi achchha laga.....
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