Sunday, May 24, 2009

जीवन सौरभ


जीवन के रणपथ पर देखो पुष्प कई और कांटे भी ,

सुख -दुःख की है नियति यही है वह साथ हैं आते -जाते ,

पर तुमको है आगे बढना यह नियति नही कुछ कर पायेगी ,

वह तो एक नियत नियति है निश्चित तुमको डराएगी ,

उठ कर गिर कर ,गिरकर उठ कर जब तुम इच्छित पाओगे ,

मानो सुमनों के बीच सौरभ को महकाओगे ,

जीवन उपवन हो जाएगा ।

पुष्पित होगी हर इक डाली सुरभित हो समीर

चहुं ओर खिलेगी हरियाली ।


रचनाकार सुश्री पल्लवी मिश्रा की प्रथम रचना ।

2 comments:

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत कविता लिखा है आपने! बिल्कुल सही फ़रमाया हमें कभी रुकना नहीं चाहिए बल्कि जीवन के हर मुश्किल दौर को पार करके चलते रहना चाहिए!

gyaneshwaari singh said...

bhaut achi kavita mano bal badati hui...