व्रत ! ढाई अक्षर का छोटा सा शब्द अपने आप में कितना विस्तृत है । नाम लेते ही तस्वीर मन में बन जाती है ,अपने -अपने ढंग से सोलहों श्रंगार से युक्त महिलायें लिपे -पुते आँगन में अल्पना बना रही है ,लोटे से चंदा मामा को अधर्य दे रही है या बड़ों के पैर छू रही है । रंगारंग संस्कृति से कौन अभिभूत नही होता ............. ..करवा चौथ यानि संकल्प और यथा साध्य प्रयास ।आज रात जब व्रत से व्याकुल करोड़ों जोड़ी नयन चलनी की ओट में चंदा का बिम्ब देखेंगे तो नेपथ्य में एक मल्लती प्लेक्स संस्करण भी झिलमिलायेगा । एकता कपूर मार्का सीरियल की तरह करवा चौथ का भी बाजारीकरण हो गया है । देश के हजारों ब्यूटी पार्लर और मेहंदी लगाने वाले कम से कम आज उन पुरखों को साधुवाद तो देंगे जिन्होंने सदियों पहले सुहागनों को एक दिन निराहार रहने का विचित्र विधान दिया । दांपत्य जीवन को ,पति को खिलाकर ही खाने और प्यार -मनुहार से उपहार वसूलने जैसी मीठी शर्तों से बाँधने वाले इस का कभी शायद कोई पावन अर्थ रहा हो ,आज तो वह जींस धारियों के हाथ mछलनी जैसे वाले नज़ारे दिखा रहा है । व्यवसायीकरण के चलते एक -दो हजार रूपए से लेकर दस हजार रूपए तक के सोने चांदी के बने डिजाइनर कर'वे जो गंगा जमुनी करवा ,नातद्बारा ,कोल्हापुरी ,राजस्थानी के नाम से बाजार मैं मौजूद है । पारम्परिक मिटटी के करवे दस -तीस रूपए तक मिल रहे है ........................तुम धन्य हो बाजार ।
यह तो कहा ही जा सकता है की ......."दिलबर से अगर मिलना है तो, दिलबर बने रहना" (अज्ञात )