Thursday, January 28, 2010

दोस्ती --तमाम खूबसूरत रिश्तों में से एक रिश्ता........

दोस्त जीवन भर की उपलब्धि होता है ,जिस पर गुरुर  किया जाता है. जिस रिश्ते के साथ जी भर कर मिलना होता हो और उसके जाने पर जी न भरे उस रिश्ते को हम  दोस्ती  कहते है . इसी  वजह से  दुनिया के तमाम रिश्तों में से एक खूबसूरत रिश्ता दोस्ती का होता है . "दोस्त तो स्ट्रीट लाइट कि तरह होते है ,वे रास्ते को छोटा  नहीं बनाते ,लेकिन राह में वह रौशनी भर देते है . जिससे आपका सफ़र तय करना सहज हो जाता है . "
दोस्त बनना या बनाना हमारी व्यक्तिगत भावनाए होती है जिससे  कोई अजनबी इन्सान हमारा अच्छा साथी साबित होता है .  कोई हम उम्रर इन्सान हमारे साथ काम करता हो , पढ़  या खेल रहा हो वो दोस्त बन जाये वो  मार्गदर्शक  तो हो सकता है लेकिन जरुरी नहीं कि एक अच्छा दोस्त बने . दोस्ती के लिए समय चाहिए जिससे एक दुसरे को समझा जा सकें . हममें से ज्यादा तर लोग यह सोचते हैं कि जो इन्सान हमारी पहचान का समर्थन या सहयोग करते है वो ही हमारे सच्चे दोस्त है बल्कि मेरे हिसाब से ऐसी  बातें आत्म मोह वाली होती है .जब वक्त गुजर जाता है तब पता चलता है कि हमने दोस्त बनाने में क्या गलती कि थी . आत्म मोह वाली बातों का ध्यान रखना जरुरी होता है खास कर जब दो मेल -फीमेल दोस्त हो . एक सही दोस्त आपकी जिंदगी को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है
दोस्त बनाने के लिए हमको को न तो धर्म ,जाति देखने होते हैऔर न ही रुतबा .  दोस्ती करने में  सबसे बड़ी बात तो यह भी होती कि जन्म कुंडली मिलाने  का कोई झन्झट नहीं है .इस खूबसूरत  रिश्ते में सबसे खास बात यह भी होती  कि  लड़ाई हो जाने पर जब बिना बातचीत के नहीं रहा जाता   तो बस  हमको यह कहना होता है कि क्या बे ज्यादा दिमाग ख़राब है सॉरी बोल तो रहा हूँ देख आज तेरी वाली बड़ी अच्छी लग रही चल देख कर आते है और कुछ ऐसा  ही लड़किओं कि तरफ भी  होता है! ......फिर से दोस्ती का रंग शुरू हो जाता है ...
एक खूबसूरत कथन है," ईश्वर जब हमे अपने अनुकूल परिवार नहीं दे पाते तो वे दोस्तों को हमारी जिंदगी में भेजर  हमसे माफ़ी मांग लेते है "

मन कि बात----दोस्त नाराज हो जाये तो उसे सौं बार मनाएं क्योंकि अच्छे दोस्त ढूंढे नहीं मिलते . एक वो ही इन्सान होता है जो स्वार्थ को दर किनार करके आपसे जुड़ता है . आप दुखी होते तो दोस्त को दुःख  होता है ,जब आप हंस रहे होते तो तो वो भी आपके  साथ हँस रहा होता है .

Tuesday, January 26, 2010

न लिखने की पीड़ा.........

लिखने से अधिक पीड़ा ,न लिखने में होती है । बहुत सा अलिखित रोज कचोटता रहता है । भागम -भाग की जिंदगी में सारा दिन यूही बीत जाता है,पता ही नहीं चलता और padhne  -लिखने के लिए समय ही कहाँ बचता है । मन में चल रहे विचारों के नुकीले कोनों को रगड़ -रगड़ कर गोल करने की कोशिश करता रहता हूँ । यदि इसके वाबजूद कुछ गलती हो जाये तो उसका कसूरवार मै ही हूँ ...इसके लिए मेरे स्कूल ,कालेज को दोषी न समझे...............जरुरी नहीं होता की हर स्कूल में सभी काबिल हो मुझ जैसे इडियट (अपने आमिर खान की थ्री इडियट की तरह न समझे ) भी होते है ,जिसके रिपोट कार्ड पर हमेशा लाल इंक ने इबारत लिखी गयी । वैसे मैने इस इबारत को tahe  दिल से गले लगाया ..... खैर जाने दीजिये अब इन बातों में क्या रखा है क्योंकि जो खूब पढ़ कर पास हुए वो भी मस्त और हम वैसे ही मस्त ॥
काफी अरसे से लिखना नहीं हो पाया उसकी वजह थी की मै अपनी बहन डॉ प्रतिभा मिश्रा को हरि
प्रकाश शर्मा जी के साथ सात फेरे दिलाने में व्यस्त था फिर अपने आप से बहाना मारने मे तो मै अव्वल हूँ कोई न कोई बहाना .....यार कल से लिखते है अभी तो बहन की शादी की है कुछ दिन आराम कर लिया जाये । अख़बार के दफ्तर में तो लिख लेते ही है यह सोच कर पूरी तरह आराम कर लिया। अब लिखने का मन बना लिया है । उसके पीछे भी कारण है आज मेरे एक साथी न लिखने पर नाराजगी जाहिर की और कहा है की अबे इडियट नहीं लिखोगे तो तुम्हे अपने खाने -पीने का बिल अदा करवाउंगा ...वैसे भी वो पेशे से बकील है उसके दोनों हाथ दुसरे की जेब तलाशते रहते है । कविता ,कहानी से भी अधिक खतरा लेख लिखने में होता है । लेख लिखने में कोई वचाब नहीं हो पता और न काल्पनिकता का कोई बहाना ।खैर दोस्त तहे दिल  se शुक्रिया ....अब कुछ दोस्ती पर ही लिखने की कोशिश करता हूँ

मन की बात ---नाराजगी को मत हावी होने दो और इसे अपने दिल में सहेज के भी मत रखो ,बोल दो । बातों से रिश्तों में पड़ी गांठ खुल जाती है ।