'प्यार से फुलाती है रोटियां ,
गुस्से मे जलाती तवे पर रोटियां ,
वे जली रोटियां ख़ुद ही खाती है
जिस पर आया था गुस्सा ,
माँ ऐसी होती है ।
उदासी में भूल जाती है
सब्जी में नमक डालना और चाय में चीनी ,
पति को दफ़तर,बच्चो को स्कूल भेजते हुए ,
वे टिफिन में रख देती है अपना दिल ,
मेहनत से बनी रोटियां का पसीना ,
वो मीठा पसीना कितना अच्छा होता है ,
रुंधे गले से चाहकर भी रोने की फुर्सत नही पा पाती ,
ऐसी होती है "माँ "
3 comments:
maa par likhi lines acchi hain.this is the true picture of mother.or one can say that mother cant be expressed in words...nice
इतना सुंदर कविता लिखा है आपने माँ को लेकर की मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती! बहुत खूब!
kitana sch hai maan ke bare men
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