Sunday, March 22, 2009

" माँ ऐसी होती है "

'प्यार से फुलाती है रोटियां ,
गुस्से मे जलाती तवे पर रोटियां ,
वे जली रोटियां ख़ुद ही खाती है
जिस पर आया था गुस्सा ,
माँ ऐसी होती है ।
उदासी में भूल जाती है
सब्जी में नमक डालना और चाय में चीनी ,
पति को दफ़तर,बच्चो को स्कूल भेजते हुए ,
वे टिफिन में रख देती है अपना दिल ,
मेहनत से बनी रोटियां का पसीना ,
वो मीठा पसीना कितना अच्छा होता है ,
रुंधे गले से चाहकर भी रोने की फुर्सत नही पा पाती ,
ऐसी होती है "माँ "

3 comments:

Unknown said...

maa par likhi lines acchi hain.this is the true picture of mother.or one can say that mother cant be expressed in words...nice

Urmi said...

इतना सुंदर कविता लिखा है आपने माँ को लेकर की मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती! बहुत खूब!

प्रज्ञा पांडेय said...

kitana sch hai maan ke bare men