बचपन की चाह ,वो रेत का घरोंदा ,
बिखरी हुई रेत को समेट कर बनाया घरोंदा
वो रेत का घरोंदा ।
मेरे साथ -साथ बड़ा हो गया ,
वो रेत का घरोंदा ।
बंद आखों में सहेज कर रखा है
वो रेत का घरोंदा ,
सांसो में बसा है ,
वो रेत का घरोंदा
हर pal sath रहता है बचपन में बनाया
वो रेत का घरोंदा ,
मेरे sapno में बसा है
वो रेत का घरोंदा ,
दिल के कोने मे सहेज कर रखा है ।
udasi bhare chehre पर muskraht दे jata है ,
badlti हुई दुनिया के rango मे भी aajij है
वो रेत का घरोंदा ।
4 comments:
बहुत बढ़िया!
रचना बहुत अच्छी लगी।आप मेरे ब्लाग पर आए इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।आगे भी हर सप्ताह आप को ऐसी ही रचनाएं मेरे सभी ब्लाग्स पर मिलेगी,सहयोग बनाए रखिए......
sach pyare se bachpan ki pyari si yaaden taaza ho gayin. hum pahle bhi aapka blog padh chuke hain par maloom nahi tha ki ye aapka blog hai.
i read blog
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