Sunday, May 24, 2009

अनाम सा रिश्ता .....




देह गंध से परे,एक अनाम सा रिश्ता है ,


मन का मन से ।


सुवासित है जो यादों की महक से ,


इसमे हँसी की खनखनाहट है।


क्रंदन स्वर भी है जो ले जाता है, पाताल की गहराई में ,


कभी पहुँचाता है, आकाश की उंचाइयों तक ।


और कभी एक भर पूर जीवन को शून्य मे लटका देता है,


सोचता हूँ ............................... ।


इस रिश्ते को अब नाम दे दूँ


और मुक्त हो जाऊं सरे बन्धनों से।

2 comments:

Urmi said...

आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
मेरे सारे ब्लोगों पर आपका स्वागत है! जब भी वक्त मिले मेरे ब्लॉग पर ज़रूर आइयेगा !
बहुत ही शानदार कविता लिखा है आपने और काफी गहराई है कविता में ! इसी तरह लिखते रहिये और हम पड़ने का लुत्फ़ उठाएंगे!

gyaneshwaari singh said...

bahut sahi kaha...manbhavan kavita hai apki.
kai riste aise hote hai jinka koi nama nahi hota hai magar hamare liye uske mayne bhaut jayada hote hai...
ya unke bina ham kalpana nahi bhi kar pate hai kai baar...
un risto ko nama dena kaha tak ho payega ye waqt hi batata hai..
sunder ahsaas