Sunday, August 02, 2009

"फ्रैंडशिप डे" और ........ दोस्त......महिमा


फ्रेंडशिप डे वाले दिन ,बरेली जाते वक्त ट्रेन में एक बहुत ही प्यारी सी महिमा से दोस्ती हो गयी । ईश्वर ने मेरी इस नये दोस्त को हम लोगो की तरह बुराई करने के लिए आवाज और बुरा सुनने शक्ति नही दी है ( महिमा जन्म से बोल और सुन नही सकती है) । इसलिए मैं महिमा को उन लोगो से बेहतर मानता हूँ जो बोल और सुनने के बावजूद बुरा बोलते है और बुरा ही सुनते है । जब तक हम दोनों एक दुसरे से नही मिले थे तब ही तक नये थे, जब घुल मिल गये तब लगा ही नही की थोडी देर पहले तक हम अनजान थे उसके बाद तो हम लोग दोस्ती की तरफ़ कदम बड़ा चुके थे । वैसे भी दोस्ती एक वो शक्ति है जिसमे विनम्रता , प्रकाश ,स्नेह व प्रेम की झलक होती है।
हम लोगो ने मिल कर खूब मजे किए।मैने उसको कुछ जादू करके दिखाए उसने भी मुझे हाथ की सफाई के कमाल करके के दिखाए जो उसको औरों से अलग करती है ।
महिमा के पापा ने बताया की महिमा की याददाश्त बड़ी गजब की है सालों - साल पुरानी बातें कभी नही भूलती है । महिमा की अच्छी याददाश्त के लिए उसके पापा -मम्मी अपने इलाके में जाने जाते है। और यह कहा जाता की इनकी बेटी खूबिओं का भंडार है। ,महिमा के पापा का कहना था की हम लोगो को गर्व है की महिमा के हम पापा -मम्मी है और खुशी तब और होती है जब हमें लोग हमारी बेटी के नाम से बुलाते है । bareilly आते -आते हम दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे क्योंकि हम दोनों ने अगली मुलाकात पक्की करने के लिए फ़ोन नंबर एक दुसरे को दे चुके थे । मैने महिमा से जल्दी मिलने का वादा कर उससे विदा ली .....जाते वक्त पलट कर जब मैने देखा तो दूर से ही मुस्करा कर हाथ हिला रही थी। आज बहुत से दोस्तों के फ्रैंडशिप डे पर फ़ोन तो आए लेकिन जो सकूँ महिमा के साथ आया वो सुख किसी से नही मिल पाया ....... ।

मन की बात-: "माँ -पिता के लिए इससे अच्छी बात हो ही नही सकती की वो अपने बच्चों के नाम से जाने जाए ,खास कर बेटियों के माँ -पिता को ........."

2 comments:

sandhyagupta said...

Mahima se milkar mujhe bhi bahut khushi hui.

kshama said...

वास्तव मे ये दोस्ती बड़ी अनमोल है.मुश्किल इस बात की है की जो रिश्ते जितनी आसानी से बनते हैं,उन्हें निभाना उतना ही कठिन होता है.