Thursday, January 28, 2010

दोस्ती --तमाम खूबसूरत रिश्तों में से एक रिश्ता........

दोस्त जीवन भर की उपलब्धि होता है ,जिस पर गुरुर  किया जाता है. जिस रिश्ते के साथ जी भर कर मिलना होता हो और उसके जाने पर जी न भरे उस रिश्ते को हम  दोस्ती  कहते है . इसी  वजह से  दुनिया के तमाम रिश्तों में से एक खूबसूरत रिश्ता दोस्ती का होता है . "दोस्त तो स्ट्रीट लाइट कि तरह होते है ,वे रास्ते को छोटा  नहीं बनाते ,लेकिन राह में वह रौशनी भर देते है . जिससे आपका सफ़र तय करना सहज हो जाता है . "
दोस्त बनना या बनाना हमारी व्यक्तिगत भावनाए होती है जिससे  कोई अजनबी इन्सान हमारा अच्छा साथी साबित होता है .  कोई हम उम्रर इन्सान हमारे साथ काम करता हो , पढ़  या खेल रहा हो वो दोस्त बन जाये वो  मार्गदर्शक  तो हो सकता है लेकिन जरुरी नहीं कि एक अच्छा दोस्त बने . दोस्ती के लिए समय चाहिए जिससे एक दुसरे को समझा जा सकें . हममें से ज्यादा तर लोग यह सोचते हैं कि जो इन्सान हमारी पहचान का समर्थन या सहयोग करते है वो ही हमारे सच्चे दोस्त है बल्कि मेरे हिसाब से ऐसी  बातें आत्म मोह वाली होती है .जब वक्त गुजर जाता है तब पता चलता है कि हमने दोस्त बनाने में क्या गलती कि थी . आत्म मोह वाली बातों का ध्यान रखना जरुरी होता है खास कर जब दो मेल -फीमेल दोस्त हो . एक सही दोस्त आपकी जिंदगी को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है
दोस्त बनाने के लिए हमको को न तो धर्म ,जाति देखने होते हैऔर न ही रुतबा .  दोस्ती करने में  सबसे बड़ी बात तो यह भी होती कि जन्म कुंडली मिलाने  का कोई झन्झट नहीं है .इस खूबसूरत  रिश्ते में सबसे खास बात यह भी होती  कि  लड़ाई हो जाने पर जब बिना बातचीत के नहीं रहा जाता   तो बस  हमको यह कहना होता है कि क्या बे ज्यादा दिमाग ख़राब है सॉरी बोल तो रहा हूँ देख आज तेरी वाली बड़ी अच्छी लग रही चल देख कर आते है और कुछ ऐसा  ही लड़किओं कि तरफ भी  होता है! ......फिर से दोस्ती का रंग शुरू हो जाता है ...
एक खूबसूरत कथन है," ईश्वर जब हमे अपने अनुकूल परिवार नहीं दे पाते तो वे दोस्तों को हमारी जिंदगी में भेजर  हमसे माफ़ी मांग लेते है "

मन कि बात----दोस्त नाराज हो जाये तो उसे सौं बार मनाएं क्योंकि अच्छे दोस्त ढूंढे नहीं मिलते . एक वो ही इन्सान होता है जो स्वार्थ को दर किनार करके आपसे जुड़ता है . आप दुखी होते तो दोस्त को दुःख  होता है ,जब आप हंस रहे होते तो तो वो भी आपके  साथ हँस रहा होता है .

Tuesday, January 26, 2010

न लिखने की पीड़ा.........

लिखने से अधिक पीड़ा ,न लिखने में होती है । बहुत सा अलिखित रोज कचोटता रहता है । भागम -भाग की जिंदगी में सारा दिन यूही बीत जाता है,पता ही नहीं चलता और padhne  -लिखने के लिए समय ही कहाँ बचता है । मन में चल रहे विचारों के नुकीले कोनों को रगड़ -रगड़ कर गोल करने की कोशिश करता रहता हूँ । यदि इसके वाबजूद कुछ गलती हो जाये तो उसका कसूरवार मै ही हूँ ...इसके लिए मेरे स्कूल ,कालेज को दोषी न समझे...............जरुरी नहीं होता की हर स्कूल में सभी काबिल हो मुझ जैसे इडियट (अपने आमिर खान की थ्री इडियट की तरह न समझे ) भी होते है ,जिसके रिपोट कार्ड पर हमेशा लाल इंक ने इबारत लिखी गयी । वैसे मैने इस इबारत को tahe  दिल से गले लगाया ..... खैर जाने दीजिये अब इन बातों में क्या रखा है क्योंकि जो खूब पढ़ कर पास हुए वो भी मस्त और हम वैसे ही मस्त ॥
काफी अरसे से लिखना नहीं हो पाया उसकी वजह थी की मै अपनी बहन डॉ प्रतिभा मिश्रा को हरि
प्रकाश शर्मा जी के साथ सात फेरे दिलाने में व्यस्त था फिर अपने आप से बहाना मारने मे तो मै अव्वल हूँ कोई न कोई बहाना .....यार कल से लिखते है अभी तो बहन की शादी की है कुछ दिन आराम कर लिया जाये । अख़बार के दफ्तर में तो लिख लेते ही है यह सोच कर पूरी तरह आराम कर लिया। अब लिखने का मन बना लिया है । उसके पीछे भी कारण है आज मेरे एक साथी न लिखने पर नाराजगी जाहिर की और कहा है की अबे इडियट नहीं लिखोगे तो तुम्हे अपने खाने -पीने का बिल अदा करवाउंगा ...वैसे भी वो पेशे से बकील है उसके दोनों हाथ दुसरे की जेब तलाशते रहते है । कविता ,कहानी से भी अधिक खतरा लेख लिखने में होता है । लेख लिखने में कोई वचाब नहीं हो पता और न काल्पनिकता का कोई बहाना ।खैर दोस्त तहे दिल  se शुक्रिया ....अब कुछ दोस्ती पर ही लिखने की कोशिश करता हूँ

मन की बात ---नाराजगी को मत हावी होने दो और इसे अपने दिल में सहेज के भी मत रखो ,बोल दो । बातों से रिश्तों में पड़ी गांठ खुल जाती है ।

Tuesday, October 06, 2009

करवाचौथ........का बाजारीकरण

व्रत ! ढाई अक्षर का छोटा सा शब्द अपने आप में कितना विस्तृत है । नाम लेते ही तस्वीर मन में बन जाती है ,अपने -अपने ढंग से सोलहों श्रंगार से युक्त महिलायें लिपे -पुते आँगन में अल्पना बना रही है ,लोटे से चंदा मामा को अधर्य दे रही है या बड़ों के पैर छू रही है । रंगारंग संस्कृति से कौन अभिभूत नही होता ............. ..करवा चौथ यानि संकल्प और यथा साध्य प्रयास ।
आज रात जब व्रत से व्याकुल करोड़ों जोड़ी नयन चलनी की ओट में चंदा का बिम्ब देखेंगे तो नेपथ्य में एक मल्लती प्लेक्स संस्करण भी झिलमिलायेगा । एकता कपूर मार्का सीरियल की तरह करवा चौथ का भी बाजारीकरण हो गया है । देश के हजारों ब्यूटी पार्लर और मेहंदी लगाने वाले कम से कम आज उन पुरखों को साधुवाद तो देंगे जिन्होंने सदियों पहले सुहागनों को एक दिन निराहार रहने का विचित्र विधान दिया । दांपत्य जीवन को ,पति को खिलाकर ही खाने और प्यार -मनुहार से उपहार वसूलने जैसी मीठी शर्तों से बाँधने वाले इस का कभी शायद कोई पावन अर्थ रहा हो ,आज तो वह जींस धारियों के हाथ mछलनी जैसे वाले नज़ारे दिखा रहा है । व्यवसायीकरण के चलते एक -दो हजार रूपए से लेकर दस हजार रूपए तक के सोने चांदी के बने डिजाइनर कर'वे जो गंगा जमुनी करवा ,नातद्बारा ,कोल्हापुरी ,राजस्थानी के नाम से बाजार मैं मौजूद है । पारम्परिक मिटटी के करवे दस -तीस रूपए तक मिल रहे है ........................तुम धन्य हो बाजार ।
यह तो कहा ही जा सकता है की ......."दिलबर से अगर मिलना है तो, दिलबर बने रहना" (अज्ञात )

Sunday, October 04, 2009

दोस्ताना हमारा ........

रात जब अपने पूरे कगार पर थी ,
तब कलम मेरे हाथ में थी
और साथ उन सभी पुराने दोस्तों का ,
जिनके साथ, मेरा साथ है कुछ सालों का ,
यह दोस्त पुराने तो है , सही मगर.................
यह देते है एक एहसास .......
जो रात की शुरुआत से सुबह तक ।
फ़िर उजाले की भीड़ मे खो जाते है ,
यह दोस्त है ...सन्नाटे ,खामोशी
यह सिलसला है पुराना
मगर फ़िर भी है .......दोस्ताना हमारा ।


मन की बात --" जिंदगी की कामयाबी के लिए यह बहुत जरुरी है की हमारे जीवन main चिंतन तथा सृजनशीलता की सहभागिता हो और हमारा मन उल्लास और प्रफुल्लता से परिपूर्ण हो । "

Saturday, September 26, 2009

अदब व तहजीब के शहर में मेट्रो की दस्तक........

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                   








                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                             "तहजीब के शहर में   तरक्की के वास्ते,
  आओ कोई ख्वाव चुन ले कल वास्ते "
आखिरकार अदब व तहजीब के शहर लखनऊ में मेट्रो ट्रेन का बनने लगा है खाकाराज़धानमें मेट्रो ट्रेन को दौड़ने में एक दशक लग सकते है, वैसे मेट्रो का संचालन कैसे होगा उसका भी खाका लगभग तय सा है ।  फ़िलहाल तो भूमि परीक्षण हो रहा है उसके बाद प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की जायेगी । तकनीकी अधिकारियों के अनुसार लखनऊ मे मेट्रो ट्रेन का संचालन बहुत चुनौंती पूर्ण होगा । हजरतगंज में मेट्रो ट्रेन का भूमिगत स्टेशन होगा और इसके अलावा अदब के शहर में मेट्रो ट्रेन ९० % खम्भों के सहारे हवा से बातें करेगी जबकि १० % भूमिगत होगी । अमौसी -मुंशी पुलिया ,राजाजीपुरम -गोमतीनगर तथा शक्ति भवन ,कैसरबाग ,अमीनाबाद हुसैनगंज ,आदि इलाके को होंगे जिन्हें मेट्रो ट्रेन अपने दिल की धडकनों से वाकिफ कराएगी ।
अभी तो सपना है जो शहर के लोगो ने देखना शुरू किया है जिसे पूरा करने में शासन को अपनी इच्छा शक्ति दिखानी होगी । जब से पता चला है की लखनऊ में मेट्रो आ रही है खुशी तो बहुत हो हुई पर यह मनवा बड़ा बावरा है खुशी के साथ एक चिंता साथ में फ्री दे दी । बिजली आपूर्ति का जो हाल है वो तो जगजाहिर है , मेट्रो आने पर क्या हाल होगा उसका रब ही मालिक ............लिखे जाने तक बिजली उत्पादन घटा है और बिजली संकट अपने पैर पसार रहा है । ओबरा ,अनपरा व परीछा बिजलीघरों में एक -एक इकाई ठप है जबकि ९ हजार मेगावाट की जरुरत है और उत्पादन हो रहा २००० मेगावाट का । बिजली उत्पादन के घटते स्तर को देखते हुए नये पवार प्लांट की जरुरत है जिस पर तेजी से काम होना चाहिए । जब हम लोग आज बिजली की हाय -तोबा कर रहे है तब क्या करेंगे जब मेट्रो चलेगी ....क्या ऐसे हालातों में मेट्रो के चलने पर प्रशन चिन्ह नही लगता .......बस चिंता जो मन को सता रही है की, कही यह न हो की केन्द्र सरकार व राज्य सरकार की आपसी लडाई में तहजीब का शहर मेट्रो से दूर हो जाए क्योकि मेट्रो चलने के लिए बिजली की बहुत जरुरत होगी ............मौजूदा हालत कुछ और बयाँ कर रहे है ।


मन की बात --जनहित में बिजली की चोरी व दुरूपयोग को रोके ....कुछ इस तरह हम लोग भी मेट्रो ट्रेन की शुरूआत का हिस्सा बन सकेगे.....तभी तो हमारे घरों की नन्हे -मुन्ने गा सकेंगे ......छुक -छुक करती आई .....मेट्रो train

Friday, August 21, 2009

ब्लॉग की दुनिया में एक साल का सफर ....पहली वर्षगाँठ

वो खेल वो साथी वो झूले ,
वो दौड़ के कहना आ छू ले ।
हम आज तलक भी न भूले ,
वो ख्वाब सुहाना बचपन का।
इस गीत की लाइनों ने मुझे अपने ब्लॉग बनाये जाए वाले दिन याद दिला दिया क्योंकि जब हम कोई खेल खेलना नही जानते है तब हम सिर्फ़ दूर से देख कर मन मसोस कर जाते है की काश हम भी खेल लेते । कमोबेश कुछ ऐसे ही मेरे साथ हो रहा था जब मैं दूसरो को ब्लॉग लिखते देख रहा था । क्योंकी इस बावरे कंप्यूटर से मेरा कम परिचय था बस मतलब भर कि दोस्ती थी या कह सकता हूँ कि इस मतलब भर दोस्ती से मेरी नौकरी बची हुई थी
.....बस एक दिन मैने अपने विवेक भइया कहा कि भइया ब्लॉग कैसे बनाते है ...बस जी भाई ने जरा सी देर में मुझे ब्लॉगर बना दिया । पहले मैं सोचता कि यार यह कंप्यूटर पर कैसे ब्लॉग लिखते है ...कैसे करते होंगे ..लेकिन जब मै ब्लॉग कि दुनिया मे आया तो ब्लॉग कि दुनिया इतनी अच्छी लगी कि पता ही नही चला कि कब एक साल का सफर तय कर लिया । ब्लॉग कि दुनिया लोगो ने मेरा स्वागत किया और प्रोत्साहित किया, उसके लिए मेरी ओर से तहे -दिल से शुक्रिया .............बस यूही साथ बनाये रखियेगा ................... ।
" पार ब्रह्म परमेश्वर सगुन रूप सियाराम, जो आवै इस द्वार पर सबको सीताराम "

Monday, August 17, 2009

यादें......

दूर कहीं उस पार क्षितिज के , रहती मन की यादें
ले आती आँचल में अपने ,बीती यादों के लम्हे ,
लेकर खुशिओं का खजाना ,यूं आंखों में उतर आती है यादें ।
जैसे सूरज की किरणों से खिलती सागर की लहरें ,
ले जाती है इस भावुक मन को ,नील गगन में ऐसे ,
हसीं तमन्नाओ के सौदागर हो जैसी......... ।
चहुँ ओर खिले है पुष्प अनोखे ,
नई आस है मन में ............. ।
दूर कहीं उस पार ..... क्षितिज के..... ।
.......................
कभी -कभी कुछ शब्द यूही मन में आ जाते है और हम लोग इसको कागज पर उकेर देते है मेरे यह शब्द भी उसका ही हिस्सा है ।
ma

Sunday, August 02, 2009

"फ्रैंडशिप डे" और ........ दोस्त......महिमा


फ्रेंडशिप डे वाले दिन ,बरेली जाते वक्त ट्रेन में एक बहुत ही प्यारी सी महिमा से दोस्ती हो गयी । ईश्वर ने मेरी इस नये दोस्त को हम लोगो की तरह बुराई करने के लिए आवाज और बुरा सुनने शक्ति नही दी है ( महिमा जन्म से बोल और सुन नही सकती है) । इसलिए मैं महिमा को उन लोगो से बेहतर मानता हूँ जो बोल और सुनने के बावजूद बुरा बोलते है और बुरा ही सुनते है । जब तक हम दोनों एक दुसरे से नही मिले थे तब ही तक नये थे, जब घुल मिल गये तब लगा ही नही की थोडी देर पहले तक हम अनजान थे उसके बाद तो हम लोग दोस्ती की तरफ़ कदम बड़ा चुके थे । वैसे भी दोस्ती एक वो शक्ति है जिसमे विनम्रता , प्रकाश ,स्नेह व प्रेम की झलक होती है।
हम लोगो ने मिल कर खूब मजे किए।मैने उसको कुछ जादू करके दिखाए उसने भी मुझे हाथ की सफाई के कमाल करके के दिखाए जो उसको औरों से अलग करती है ।
महिमा के पापा ने बताया की महिमा की याददाश्त बड़ी गजब की है सालों - साल पुरानी बातें कभी नही भूलती है । महिमा की अच्छी याददाश्त के लिए उसके पापा -मम्मी अपने इलाके में जाने जाते है। और यह कहा जाता की इनकी बेटी खूबिओं का भंडार है। ,महिमा के पापा का कहना था की हम लोगो को गर्व है की महिमा के हम पापा -मम्मी है और खुशी तब और होती है जब हमें लोग हमारी बेटी के नाम से बुलाते है । bareilly आते -आते हम दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे क्योंकि हम दोनों ने अगली मुलाकात पक्की करने के लिए फ़ोन नंबर एक दुसरे को दे चुके थे । मैने महिमा से जल्दी मिलने का वादा कर उससे विदा ली .....जाते वक्त पलट कर जब मैने देखा तो दूर से ही मुस्करा कर हाथ हिला रही थी। आज बहुत से दोस्तों के फ्रैंडशिप डे पर फ़ोन तो आए लेकिन जो सकूँ महिमा के साथ आया वो सुख किसी से नही मिल पाया ....... ।

मन की बात-: "माँ -पिता के लिए इससे अच्छी बात हो ही नही सकती की वो अपने बच्चों के नाम से जाने जाए ,खास कर बेटियों के माँ -पिता को ........."

Monday, June 29, 2009

शाम -ए-अवध की महक


"वो तो खुशबू है , हवाओं मे बिखर जायेगी ,
मसला फूल का, फूल किधर जायेगा ।"(अज्ञात )
इसी हाल मे है ,शामे अवध को महकाने वाले । दूसरो को गजरे की महक देने वाले ख़ुद उसकी महक से दूर है । पहले लखनऊ के चौक ,कैसरबाग और हजरतगंज के इलाके शाम होते ही गजरों की महक से महकने लगते थे । तवायफों के कोठों पर भी वातावरण गजरों के बिना अध्रूरा रहता था । बेला ,चमेली ,जूही ,मोगरा ,कुंद ,गुलाब ,नेवारी के गजरे मुजरे और तबले की थाप के साथ तवायफों के मन मोहक डांस तथा उनके जूडे उनके प्रेमियो के हाथ मे लिपटे गजरे रोमानियत मे चार चाँद लगा देते थे । लखनऊ के गजरे किसी वक्त अपनी महक व शोहरत के नायाब उदाहरण थे ,लेकिन अब ऐसा नही रहा। अब तो इन गजरों का चलन सिर्फ़ कुछ महिलाओं के जूडों तक ही सीमित रह गया है । हजरतगंज में गजरे बेचने वाले अरविन्द बताते है की अप्रैल से अगस्त तक बिकने वाले इन गजरों के कच्चे काम में मेहनत ज्यादा है और फायदा कम है । यदि माल बचा तो जेब अपनी ढीली होती है । गजरों की बात करे तो सालों साल पुरानी फूल वाली गली की महक को भी भुलाया नही जा सकता है । पर्यटन विभाग जैसे नबाबी सवारी इक्का ,बग्घी को प्रोत्साहित करता है ,उसी तरह गजरे बेचने वालों को भी प्रोत्साहित करे तो गजरे की महक को फ़िर से ताजा करने में बेहतर कदम साबित होगा ।
जब तक सरकारी तंत्र कुछ करे तब तक हम लोग ही अपनों को गजरे भेंट कर अपने स्तर से ही प्रोत्साहित कर सकते है। वैसे भी बरसात का मौसम रोमानियत व फूलों का मौसम माना जाता है जिसमे कजरी के गीत हो जाए तो .......फ़िर बात ही क्या ....अब देर किस बात की शाम - ए - अवध की महक आपके इंतजार में की आप आए और अपने चाहने वाले के लिए अवध की महक उसके नाम कर दे ।
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मौसम का हाल >>प्यार और मौसम दो ऐसी चीजे है जिसके के बारे निश्चित तौर पर कुछ नही कहा जा सकता है ।
----एलिस हॉफमैंन




Wednesday, June 24, 2009

एक ढलती शाम का सूरज




यह ढलती शाम का सूरज बुन्देलखंड के मीठी जुबान का शहर महोबा (यू. पी.) का है । मेरे अलावा इस खूबसूरत शाम के साक्षी राहुल मिश्रा और पल्लवी मिश्रा भी रहे ,जिन्होंने मेरे साथ इस शाम को भरपूर जिया ।































Monday, June 22, 2009

यह बंधन है भावनाओं का ---- सात फेरे

"वो हम ही क्या जिसमे तुम नही ,वो तुम ही क्या जिसमे हम नही "।

पड़ोंस की बिटिया को हल्दी लगी नही कि अपनी बेटी सयानी लगने लगती है । दूर कहीं बजती शहनाई कीगूँज और विदाई के गीतों पर भी माँ कि आख्ने भर आती है, ये सोच कर कि न जाने कब उनकी लाडों कि विदाई की बेला आयेगी । पापा भी तो रात - दिन इसी फ़िक्र में लगे रहते है कि हमारी बिटिया के हाथ कब पीले होंगे। ..........ओर एक दिन ऐलानकर दिया जाता है कि लड़के वाले देखने आ रहे है । हिना की महक ,शहनाई की मीठी मधुर आवाज़ ,सखियों की खिलखिलाहट यानि वातावरण विवाह का । विवाह की रुत करीब है और प्रीत की इस रीत में सात फेरो का भी तो मान है । सात फेरो को लेकर ही तो बेटे- बेटी , पति -पत्नी बनकर कई रिश्तो व रिवाजो के दायरे में सिमट जाते है । रस्मों के नाम पर ही तो दो लोग एक दूसरे के नाम से जुड जाते है ,यही जीवन की रीत है और यही रिवाज भी है । जिन्दगी का ........चुटकी भर सिंदूर ही पूरे जीवन का सार बन जाता है । विदाई के आँसू ससुराल के लिए स्नेह बन जाते है और नेह के नये रिश्ते जुड़ जाते है एक परिवार के साथ ।
अक्सर एक सवाल उठता है की सात कदम ही क्यों ? असल में सात का अंक का अपने आप में अत्यन्त गहरी आधात्मिक ,दार्शनिक और देवीये स्थान समेटे हुए है । उर्जा के सात आयाम है ,पवित्र अग्नि की सात शिखाये है । सात नदिया है , स्त्री के जीवन के भी सात चरण है और शरीर के सात चरण है। संगीत के सात सुर है ,सूर्य की सात किरणे है और मुख्य ग्रेह भी सात है इसलिय सात को एक ऐसा पवित्र अंक माना गया है ,जो एक लाबी आयु देता है । सावित्री और सत्यवान की प्रसिद्ध कथा में सावित्री यमराज से कहतीं है की मैं आपके साथ सात कदम चल चुकी हूँ लिहाजा हम अपने आप ही मित्र बन चुके है और अब जबकि हम मित्र है ,आप मेरे पति को मुझसे दूर ले जा कर विधवा कैसे बना सकते है । इस तरह सप्तपदी की अवधारणा मनुष्य के चार पहलुओं धर्म ,अर्थ ,काम मोझ की साधना से बहुत गहरे स्तर पर जुड़ी हुई है । सप्तपदी के बारे में 'पारस्कर ' और वेदों में कहा गया है की यह रस्म निभाए बिना विवाह का कोई मतलब नही है । यहाँ तक की माता -पिता द्वरा कन्यादान कर दिए जाने के बाद भी विवाह को सम्पूर्ण नही माना जा सकता । जब तक कन्या ख़ुद सात कदम चलने की रस्म निभाने का निर्णय न ले । इसके बाद ही दुल्हन ,दुल्हे के बांये आकर पत्नी के रूप में स्थान लेती है । सप्तपदी ही एक ऐसी रस्म है जो कन्या को पवित्र अग्नि को साक्षी मान कर वर चुनने का अधिकार देती है । इस रस्म को निभाते हुए दुल्हन विवाह के हाँ करती है । और दुल्हे को अपने पति के रूप में वरण करती है । वेदों कहा गया है की कन्या को तब तक अविवाहित माना जाएगा जब तक की सप्तपदी की रस्म पूरी न हो जाए । अक्सर लोग फेरो को ही सप्तपदी समझ लेते है ,लेकिन ऐसा है नही । सप्तपदी अलग रस्म है और इसमे दूल्हा -दुल्हन दोनों साथ -साथ उत्तर -पूर्व की ओर चलते है । चलते हुए दुल्हन दाहिने तरफ होती है और दुल्हे का दायां हाथ उसके दाए कंधे पर होता है । दूल्हा -दुल्हन से कहता है ,अपने बाये पैर को दाए से आगे मत निकालना हर कदम पर दूल्हा -दुलहन एक संकल्प लेते है । यही तो सात वचन है और सही में विवाह के मायने भी यही समझ में आते है । सामाजिक वा अदालतों के अनुभवों के आधार पर कुल मिलकर यह ही कहा जा सकता है की विवाह एक दूसरे को समझना , एक दूसरे को मान और विश्वास देना ही विवाह हैसबसे ख़ास बात यह भी कही जा सकती है की परम्परागत विवाह हो या प्रेम विवाह सुखी वैवाहिक जीवन का आंकने का पैमाना नही है ।
जब मैं यह पोस्ट लिख रहा था तब उस समय मौजूद मेरे साथी ने कहा की वाह गुरु बहुत सही ,जिसका अनुभव नही उसमे अतिक्रमण । उस पर मैंने कहा की घोडी पर नही बैठे है तो क्या हुआ बराती तो बहुत बने है ।







Tuesday, June 02, 2009

साडी की शालीनता

हमारे देश के पिछडे इलाको मे लड़कियां छोटी उम्र मे ही धोती पहनने लगती है । काम करते वक्त ,खेलते समय अन्य कामो को करते समय -कभी सामने से ,कभी पीछे से कमर से तो कभी बैठते -उठते उनकी धोती अपने स्थान पर नही होती है तो उनको 'सामना ढक,घुटने मोड़ कर बैठ, पैर फैला कर मत बैठ जैसे वाक्यों की हिदायत मिल जाती है '। वैसे तो पहले सभी वर्ग मे लड़कियां साडी पहनती थी ,लेकिन वक्त बदला तो पहनावे मे बदलाव हुआ और शहरी इलाको मे लड़कियां सूट आदि वस्त्र पहनने लगी ।
देखा जाए तो साडी एक अनसिला और जल्दी अस्त -व्यस्त पहने जाने वाला कपड़ा है । अक्सर बसों मे महिलाओं को एक हाथ मे साडी का पल्लू और प्लेट ( पटलियां ) , दूसरे से अपना सामान थामे ,मुश्किल से बस ,ट्रेन मे चड़ते,उतरते ,लड़खाते ,गिरते ,सभलते देखा जा सकता है । कभी तो गले से पल्लू खिसकता है ,कभी कमर से साडी नीचे आती है ,कभी पैरों मे फंसती है तो कभी रिक्शा मे फंसती है।
इन सब के बाबजूद साडी शालीनता का पहचान -पत्र है ..........
साडी छ गज का बिना सिला हुआ ,खुला कपड़ा होती है उसे कैसे लपेटा ,बांधा या ड्रेप किया जाता है .उसी से उसे आकार मिलता है । जापानी किमोन भी खुला कपड़ा होता है जिसे कमर पर एक चौडी बेल्ट से बाँध लिया जाता है। किमोन से ही ड्रेप की तकनीक को भी नया रूप मिला ।
'फ्रांस की फैशन डिजाइनर ग्रेवरिपल कोको शिनेल ने लन्दन की महिलाओं को 'कोरसिंट 'और जमीन पर रपटते ,घिसटते 'वॉल गाऊन' से मुक्ति दिलाई । इन्होने ही महिलाओं के लिए पुरूषों की 'वार्डरोब ' खोल दी ।
शिनेल ने ही सबसे पहले महिलाओं के सैंडल के पीछे स्ट्रे़प लगाया ,ताकि उन्हें चलने मे सुविधा हो और सैंडल पैर से बाहर ना निकले ।
अब तो फैशन शो मे रैंप पर मॉडल साडी को अलग तरीके से पहनती है । हिन्दी सीरियल ,पेज थ्री की महिलांए तो साडी को नाम मात्र के ब्लाऊज के साथ पहन रही है । तो साडी की शालीनता पर आप का क्या विचार है ?क्या साडी के विकल्प मे कुछ ओर हो सकता है ?

Sunday, May 31, 2009

दोस्ती ....



ये दोस्ती क्या होती है ?


कहाँ जन्म लेती है ,कहाँ खत्म होती है ?


उगते सूरज के साथ उसकी पहर होती है


हवाओं में संगीत के साथ उसकी भी लहर होती है ।


सांझ होते ही वो स्तंभ क्यों होती है ?


ये दोस्ती क्या होती है .......कहाँ जन्म लेती है ,कहाँ खत्म होती है ?


सीप की रोशनी अन्दर ही बंद रहती है ,


विचारो के समंदर मे सदियों से बहती हुई जिन्दगी का परिचय करती हुई ,


दोस्ती तो मोती होती है जिस पर हम जीते है ,


दोस्ती तो विश्वास होती है जिस पर हम जीते है ।


दोस्ती तो मीठी मुस्कान होती है ।


दोस्ती तो फूल की महक होती है जिस पर हम जीते है


दोस्ती तो जिन्दगी की सहर होती है


ये दोस्ती कहाँ जन्म लेती है कहाँ ख़त्म होती है ......... ।



" उन दोस्तों को जो मेरे दिल करीब है। "

Saturday, May 30, 2009

तम्बाकू निषेध दिवस

"एक सिरे पर आग ,दूसरे पर आदमी फासला सिर्फ़ ढाई इंच "
आज तम्बाकू निषेध दिवस है यह बात सबको मालूम है और तम्बाकू का प्रयोग करने वाले लोगो को यह भी मालूम होता है की इससे क्या नुकसान है ......बस लत होने के चलते छोड़ नही पाते ।
सिर्फ़ लोग जागरूक नही है, वैसे भी जब सबको यह मालूम होता है की रेड लाइट क्रास करने पर फाइन हो सकता है फ़िर भी नियमो को तोड़ते है । चूकी मामला जीवन और परिवार का है इसलिए अपने लिए नही सही, अपने परिवार के लिए ही तम्बाकू से बचे ।

Friday, May 29, 2009

मुझे वर चाहिए..........

उम्र सत्ताईस वर्ष ,कद पॉँच फुट तीन इंच
रंग सांवला ,रूप रिझाने मे असमर्थ
एक हाथ मे एम ए की डिग्री
दूजे मे लाज मेरी
खड़ी मैं मूक ,बोलती है वेदना
की क्या मुझसे कोई ब्याह करेगा ?
दहेज़ की मार से अधमरे ,
मेरे माँ-बाप का उद्धार करेगा ।
बुत बने से हम कहीं आते जाते नही
फ़िर भी लोग घाव देने से बाज आते नही
रोज ही देखने आते है लड़के वाले
मैं दिखाई जाती हूँ ,कई आंखों से बार -बार उघाड़ी जाती हूँ ।
कभी सूरत से ,कभी गाड़ी से ,कभी पैसे से मापी जाती हूँ ।
और हर बार की तरह ही नकारी जाती हूँ ,
मन समझ नही पाता किस बात की सजा पाती हूँ
स्वप्न मे दिखती हैं हम उम्र ,
हजारो लड़कियों की अस्थियाँ
कोई अनब्याही मरी ,कोई दहेज़ की मार से मरी
तो कोई माँ-बाप को मुक्त कर सूली चढी
उनकी दर्द भरी चीखों से कांप जाती हूँ
चिता सी आग से झुलस जाती हूँ
फ़िर भी खत्म नही होती जिजीविषा
इस आस मे साँस चलती है कि
उठेगी मेरी भी कभी डोली ।
साभार : rachna kaar >सुमन सिंह, वाराणसी
यह रचना मुझे बहती हुई नाली मे मिली थी । पानी से उठाते वक्त सोचा भी न था की.........कम से कम मुझे सोचने को मजबूर कर देगी ।

Sunday, May 24, 2009

अनाम सा रिश्ता .....




देह गंध से परे,एक अनाम सा रिश्ता है ,


मन का मन से ।


सुवासित है जो यादों की महक से ,


इसमे हँसी की खनखनाहट है।


क्रंदन स्वर भी है जो ले जाता है, पाताल की गहराई में ,


कभी पहुँचाता है, आकाश की उंचाइयों तक ।


और कभी एक भर पूर जीवन को शून्य मे लटका देता है,


सोचता हूँ ............................... ।


इस रिश्ते को अब नाम दे दूँ


और मुक्त हो जाऊं सरे बन्धनों से।

हक़ तो देना होगा

आज के नये दौर मे नि :सकोंच होकर लड़कियां अपने परिवार वालो को सहमत कर जीवन साथी के बारे फ़ैसला ख़ुद कर रही हैं जो आज के समय के अनुसार सही भी है । वैसे अक्सर लोग बातचीत में भारत मे तलाक़ की बढती सख्या का दोष मोडर्न कल्चर को देते है लेकिन यह नही देखते की विवाह के मसलो पर लड़के -लड़कियों कि क्या राय है , बल्कि किसी न किसी तरह का दबाब बनाकर शादी कर दी जाती है जिसका रिजल्ट और ही कुछ होता है ।
वैसे मै बिना झिझक के कह सकता हूँ कि मेरी क्या राय है । और मै हर लड़की से कहूँगा कि "उस को यह अधिकार है कि वे ख़ुद फ़ैसला करे कि उसका पति उसके लायक है या नही .......... । यह बिल्कुल सही नही है कि लड़की को उसका पति उसे पूर्ण bnaata है । वैवाहिक जीवन तभी सफल हो सकता है , जब दोनों एक दूसरे पर विश्वास कर जीवन को सफल बनाये । जिस रिश्ते मे 100 % ईमानदारी होगी उस रिश्ते को तभी तो हम "मेड फॉर इच अदर "कहेंगे ।
पिछले एशियन गेम मे लेबनान युद्ध की मार से बचने के बाद कतर की नर्स नदा जेदान ने देश की और से मशाल थामी थी जो दुनिया की औरतों के लिए मिसाल बनी । सालो बाद कतर की ओर से कतर की किसी महिला ने बिना बुर्का पहने सड़क पर मशाल थामी । मीडिया के प्रश्न के जबाब मे नदा ने कहा था की जीवन बहुत छोटा है और वे इसे टी वी देखकर या दुल्हे के इंतजार मे नही काट सकती । कितनी अच्छी बात कही नदा ने । इसके संदेश मे किती गहराई हैजिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है ।

जीवन सौरभ


जीवन के रणपथ पर देखो पुष्प कई और कांटे भी ,

सुख -दुःख की है नियति यही है वह साथ हैं आते -जाते ,

पर तुमको है आगे बढना यह नियति नही कुछ कर पायेगी ,

वह तो एक नियत नियति है निश्चित तुमको डराएगी ,

उठ कर गिर कर ,गिरकर उठ कर जब तुम इच्छित पाओगे ,

मानो सुमनों के बीच सौरभ को महकाओगे ,

जीवन उपवन हो जाएगा ।

पुष्पित होगी हर इक डाली सुरभित हो समीर

चहुं ओर खिलेगी हरियाली ।


रचनाकार सुश्री पल्लवी मिश्रा की प्रथम रचना ।

Sunday, May 17, 2009

हाँ मैने प्यार किया है ........

हाँ मैने प्यार किया है............... । (लेखक ने नही ) यह शब्द थे एक युवती के , जिसने भरी अदालत मे अपने परिवार वालो के सामने कहे , ऐसा ही कुछ युवक ने भी कहा की हाँ हम लोग एक दुसरे को बेइंतहा चाहते है हम एक दूसरे के बिना नही जीना चाहते । युवती के परिवार वाले उस पर दबाब बना रहे थे की युवक को अपना पति मानने से इंकार कर दे। जिससे वो युवक पर अपहरण का मुकदमा लिखा देंगे और युवक सारी जिंदगी जेल की हवा खायेगा । परिवार वालों की चालाकी उसे समझ मे आ गई तो उसे भरी अदालत मे अपनी बहुत सी बाते बताई जिनसे वो गुजर रही थी और उसके bayan से एक बेगुनाह जेल जाते -जाते बचा , जो उसका पति था ।

सबसे पहले तो उन दोनों के विश्वास को सलाम । फुर्सत के लम्हों मे जब मैने सवांददाता की हैसियत से बात की to वाकई मे उनसे बात करने mae मजा आ गया । दोनों का कहना था की प्यार ,एक छोटा सा शब्द है जिसमे समाई है संसार भर की खूबसूरती । प्यार एक ऐसा एहसास है ,जिसमे जिंदगी जीने का बहाना मिल जाता है । हर इन्सान के दिल मे एहसास बसा होता है ,बस जरुरत होती है इसकी, की अपने इस एहसास को कैसे कायम रखते है । जैसे एक फूल अच्छी देखbhal से hra -bahra होता है ,उसी तरह अपनी इस भावना को संभाल कर उसे खिलने देना ही अच्छा होता हो ।

मैं तो दोनों की बातचीत या फ़िर आसपास वालो के देखकर यही कह सकता हूँ की "प्रेम का सबसे बडा गुण तो यह की वह आनंद के साथ दुख का वरण भी करता है ,क्योंकि दुख के माध्यम से ही उसे पूरी saflta मिलती है, bhawa wesh मे नही । सेवा , karm और tapasya के द्वारा जिस प्रेम का ढेर bnta है .वही प्रेम vishudh aur सफल hota hai ।

Saturday, May 16, 2009

बहने....

"जब बाप गरज रहे होते हैं बाप जैसे ,
माँ रो रही होती है माँ जैसी ,
भाई खड़े रहते है भाई जैसे ,
तब कुछ भाई ,कुछ माँ ;कुछ बाप जैसी ,
प्रार्थना मे झुकी रहती है बहने।

Saturday, May 09, 2009

"माँ"

हर शख्स की ' माँ ' के लिए ,जिसने जीवन जीने के लिए स्नेह भरा पहला स्पर्श व थपकी पाकर अपना जीवन सुरक्षित किया ।
"जिसकी बाँहों ने हमको सहारा दिया तब, जब हमारे कदम भी जमीं पर नही पड़े थे ।
किसी ने हमारे आसूं कभी न देखे हो पर उसके सामने हम न जाने कितनी बार बेझिझक रोये ।
खेलते वक्त लगी कोहनी ,घुटनों पर छोटी सी खरोचों से लेकर दिल पर लगी हर चोट को आपसे से अधिक उसने सहा ।
इम्तहान तो हमारे होते थे पर असली परीक्षा उसकी रही ।
हमारी कोई गलती भले ही उससे न छुपी हो पर हमारी हर गलती को उसने हर एक से छुपाया ।
हमारी हर कमजोरी को उसने अपनी ममता का मरहम लगाकर हर तरह से मजबूत बनाया ।
जो हमारी हर कामयाबी को देखर मुस्कराने मे ही खुश है ,उस "माँ " को शत -शत अभिनंदन ।
" दुनिया के हर जीव की माँओं को कोटि -कोटि नमन जिसमे ईश्वर बसता है "

Monday, March 23, 2009

वो रेत का घरोंदा

बचपन की चाह ,वो रेत का घरोंदा ,
बिखरी हुई रेत को समेट कर बनाया घरोंदा
वो रेत का घरोंदा ।
मेरे साथ -साथ बड़ा हो गया ,
वो रेत का घरोंदा ।
बंद आखों में सहेज कर रखा है
वो रेत का घरोंदा ,
सांसो में बसा है ,
वो रेत का घरोंदा
हर pal sath रहता है बचपन में बनाया
वो रेत का घरोंदा ,
मेरे sapno में बसा है
वो रेत का घरोंदा ,
दिल के कोने मे सहेज कर रखा है ।
udasi bhare chehre पर muskraht दे jata है ,
badlti हुई दुनिया के rango मे भी aajij है
वो रेत का घरोंदा ।

Sunday, March 22, 2009

" माँ ऐसी होती है "

'प्यार से फुलाती है रोटियां ,
गुस्से मे जलाती तवे पर रोटियां ,
वे जली रोटियां ख़ुद ही खाती है
जिस पर आया था गुस्सा ,
माँ ऐसी होती है ।
उदासी में भूल जाती है
सब्जी में नमक डालना और चाय में चीनी ,
पति को दफ़तर,बच्चो को स्कूल भेजते हुए ,
वे टिफिन में रख देती है अपना दिल ,
मेहनत से बनी रोटियां का पसीना ,
वो मीठा पसीना कितना अच्छा होता है ,
रुंधे गले से चाहकर भी रोने की फुर्सत नही पा पाती ,
ऐसी होती है "माँ "

Monday, March 02, 2009

चुहलबाजी -जनहित मे जारी

  • यदि आप पत्नी से झूठ नही बोल सकते तो आप पति होने लायक नही है ।
  • पत्नी रो रही हो तो सहानभूति का प्रदर्शन कीजिये ,मुस्करा रही हो तो सतर्क हो जाए ।
  • बरातों मे विवाहित पुरष की पहचान --जो अच्छा व तेजी से नाच रहा हो ।
    -----

Saturday, February 07, 2009

I LOVE YOU का अंकगणित

"जानता हूँ सब मगर दोस्तों ,ये दिल है जिधर आ गया ,आ गया "
सच्चा प्रेम मुखर नही होता ,मौन रहता है । सामने वाले को बिना बोले ही विश्वासऔर प्रेम का अहसास हो जाए तभी अपनेपन का मजा है । दोनों तरफ आग बराबर है, लेकिन इजहार नही हो पा रहा है समझ दोनों रहे है । तबही तो कबीरदास जी ने कहा है कि "मन मस्त हुआ तब क्या बोले "। नेह ,मुस्कराहट ,महत्व .मोह , माही,और मौन तो प्रेम को सबल बनाते है । इसलिए प्रेम कीजिये और प्रेम का आँगन आबाद बनाये रखिये । बस तेज भागती दुनिया ने आई लव यू जैसे जुमले की जगह 'अंकगणित' के 143 में बदल दिया है । इधर से 143तो उधर से भी 143बस हो गया प्यार । प्यार अंकगणित का पाठ नही है । क्योंकि 143के फेर में लोग देह का भूगोल पढ़ रहे है । तभी तो किसी ने कहा है की 'तन के तट पर मिले हम कई बार , द्वार मन का अब तक khula नही ,सैर करके चमन की क्या मिल हमे ,रंग कलियों का अब तक घुला नही । लोगो को देह के भूगोल की बजाये प्यार को अहसास में महसूस करना होगा ।
{I-- 1, LOVE--4 , YOU--3 }

Thursday, January 15, 2009

पुनः स्वास्थ्य सेवाओ की बदहाली पर चिंता

स्वास्थ्य सेवाओ को लेकर पद्मश्री प्रो.स्नेह भार्गव ने भारी चिंता जताई । देश -विदेश में विख्यात एस जी पी जी आई ने उन्हें डॉक्टरेट ऑफ़ साइंस की उपाधि से सम्मानित किया इसी मौके पर चिंता जताते हुए प्रो .भार्गव ने कहा की ग्रामीण इलाकों में ९० प्रतिशत से अधिक आबादी रहती है ,जो स्वास्थ्य सेवाओ से कोसों दूर है । जिसके पास पैसा है वही स्वस्थ है । सस्ती चिकित्सा सुविधा आम आदमी दूर है । पहल तो किसी न किसी को करनी होगी । वो भी अपनी जगह से ही । उन्होंने मेडिकल पेशे से जुड़े लोगो से कहा की वो ग्रामीण इलाको में अपना योगदान जरुर दे । इसके साथ सरकार को मेडिकल सुविधा के अलावा अन्य सुविधा भी देनी होगी ।
प्रो .भार्गव की चिंता वाजिब है। प्रदेश की स्थितियां बहुत ख़राब चुकी है । स्वास्थ्य सेवाए ऐसी ही रही तो बीमार पीढी हमको रिपलेश करेगी उसके हम लोग ही जिम्मेदार होंगे । तब हमारी बूढे शरीर में इतना दम नही होगा की उनकी बीमारी को बर्दाश्त कर सकेगे ।

Wednesday, January 07, 2009

उत्तर प्रदेश को बीमार प्रदेश का दर्जा........ शासन को बधाई

उप राष्ट्रपति एम हामिद अन्सारी ने केजीएमसी विश्वविधालय जैसे मंच से "बीमार प्रदेश " बात कही वो हम प्रदेशवासिओं को गंभीरता से मनन करना होगा । बीमार प्रदेश वाली बात कहना इतने उच्च पद वाले व्यक्ति के लिए आसान न रहा होगा कही न कही यह बात बिलकुल सही है ।
अब सरकार कल कुछ अधिकारीयों पर गाज गिरा कर इतिश्री कर लेगी । हमारा शासन पूर्व की भति काम करता रहेगा । आज किसी अधिकारी पर गाज, कल किसी पर ऐसे ही चलता रहेगा ।

Thursday, January 01, 2009

प्रार्थना

मैं वर्षों से के .डी .सिंह बाबू स्टेडियम (लखनऊ ) में टहलने या किसी खेल की रिपोटिंग करने के लिए जाता रहा हूँ । स्टेडियम के मुख्य द्वार पर लिखी प्रार्थना जो हमेशा मेरे जीवन पथ पर साथ रही और जब कभी मैंने ज़िन्दगी के मैदान में , जीत या हार से हाथ मिलाया तब इन लाइनों ने मुझे बेहतर बनाने में सहयोग किया । वैसे तो मैं पेशेवर खिलाड़ी तो नही हूँ लेकिन ईश्वर के द्वारा जीवन के खेल में खेलने वाला एक खिलाड़ी मात्र हूँ । बस यह प्रार्थना इस लिए यहाँ पर लिख रहा हूँ की शायद कही दूर देश के लोग भी जान ले की भारत के लोग हार -जीत पर ऐसा सोचते है ।

ऐ"हे ईश्वर , यदि मैं विजय का पात्र हूँ तो मुझे विजेता होने की शक्ति प्रदान करे ,लेकिन यदि मैं हारूं तो मुझे कापुरष नही अपितु एक बहादुर की तरह हार को ,स्वीकार करने की शक्ति दे ,यही मेरी प्रार्थना है । मुझे विजेताओं के गुजरने वाली राह पर उनके अभिनंदन के लिए खड़ी भीड़ में सम्मिलित होने और यह कहने की शक्ति दे की 'यह वे लोग है जो मुझसे बेहतर थे । "

"जिंदगी मे कभी रिश्तों को बनाये रखने की कोशिश मत कीजिये ,बस रिश्तों में जिंदगी बनाये रखिये"
(Rajshri Misra का एस एम एस से आया संदेश )

Wednesday, December 24, 2008

जो धागा तुम से जुड़ गया..........

अभी पिछले दिनों कुछ बुजुर्ग दंपत्तियों से बातचीत हुई, जो अपनों की दुनिया से दूर थे या दबी जुबान से यह भी कह सकते की उनके अपनों ने उनको अपनी दुनिया से दूर कर दिया । जीवन के अन्तिम पड़ाव पर इनमे से कुछ लोगो ने अपने जीवनसाथी की कमी महसूस की तो किसी ने कहा की इस लंबे सफ़र में परिवार से दूर है तो क्या हुआ हम पति - पत्नी तो है ,अब तो हम ही एक दूसरे के जीवन के सहयात्री है बस.........। "बस" जैसे इस दो अक्षर के शब्द में जो दर्द है उसको बयां करना मुश्किल है । एक बुजुर्ग दंपत्ति ने कहा की यह तो जीवन है इसमें तो उस रास्ते पर भी चलना पड़ जाता है जिस पर कभी सोचा भी नही होता है इन्ही बुजुर्ग दम्पंती ने एक दूसरे की ओर हँसते हुए कहा की अब ...............जो धागा तुम से जुड़ गया वफा का .................
यह पोस्ट मैं उनके दर्द व अनुभव के आधार पर ही लिख पा रहा हूँ इस नाते यह पोस्ट उन्ही बुजुर्गो लोगो के लिए जिनसे मैंने बहुत कुछ सीखा।
रह्स्वादी कहते है की जीवन एक अजूब पहेली है ,इसे जाना नही जा सकता । हम जीवन के पूरे सफ़र में एक ऐसे यात्री की भूमिका निभाते है ,जो आशा की नन्ही किरण की खोज में भटकता रहता है । कितना अच्छा हो की इस लंबे सफर में कोई मन का मीत मिल जाए । जब हमारे पैर लड़खडाने लगे तो वह हाथ थाम ले और जब हम सफलता के शिखर पर हो तो वो भी सहभागी हो और सत्य के अन्तिम पलों में साथ हो । वह मन का मीत हमारा जीवन साथी ही हो सकता है ।
परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई होने के साथ -साथ स्नेह का स्रोत भी है । मधुर पारिवारिक माहौल से सिर्फ़ व्यक्ति को पनपने का मौका मिलता है बल्कि वह समाज को भी संतुलित करता है ।

परिवार को बसाने और बनाये रखने में सबसे अहम् भूमिका पति -पत्नी की ही तो होती है , चाहे वे नवविवाहित हो या बरसो पुराने । क्यों न वह मेड फार इच अदर वाले भी हो । सम्बन्धों का स्वरूप बदलते मौसम की तरह है ,जिसमे कभी गर्माहट , कभी ठंडक ,तो कभी बसंत का जादू मुस्करा उठता है, उसमे धूप -छावं की आखं मिचौनी सदा अपने खेल खेलती रहती है । लेकिन एक बात और भी है प्रेम रस में भीगे रहना ही विवाह नही है हालाँकि दाम्पत्य की स्निग्धा उसके बिना कभी सम्पूर्ण नही हो सकती है । कोई भी रिश्ता हो उसमे ईमानदरी का बीज भी होना जरुरी है तभी तो रिश्ता निभाने का मजा है । किसी भी रिश्ते में अपनेपन के साथ निश्ल भावः हो तो कहने ही क्या । इन सबके होने से संबंधो की बगिया सदाबहार रह सकती है ।

हमें जरूरत सबेरे की ज्यादा है ,उसमे आलोकित होकर ही हम सुख के ग्राही हो सकते है वैसे पी.वी. शैली के शब्दों में कहा जाए तो "दिन बसंत के दूर नही अब , आता हो तो आए पतझड़ ।

Friday, December 19, 2008

जाते बरस के नाम

जाते बरस का संदेश -: कम खर्च करो ,कम उधार लो और अपनी देनदारी से मुक्ति पाओ । प्रेम और ताजी हवा हर साल मिलेगी , उसका भरपूर आन्नद उठाने से मत चूको। जीवन में रोमानियत भी लाओ और खूब बोलो और खूब हँसों।

"सोते रहना ही कलयुग है , जगना द्वापर है , उठकर खड़ा होना त्रेता है और चलना ही सतयुग है । "

Friday, December 05, 2008

कोई मेरा बचपन वापस ला दे ?

" मेरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा बड़ों की देखकर दुनिया ,
बड़ा होने से डरता है । "
कोई मेरा बचपन वापस ला दे । मुझे अब कुछ नही लेना है बस कोई मेरा बचपन ला दे ,क्योकि बचपन ही तो राज -सिंहहासन था जिसे हमने पीछे छोड़ दिया । अब बड़ों की दुनिया में मन नही लगता ,अब लगता है की बचपन ही तो राज सिंहहासन था ।
कागज़ की कश्ती थी ,
पानी का किनारा था ,
खेलने की मस्ती थी ,
दिल ये आवारा था ,
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में,
वो नादाँ बचपन कितना प्यारा था ......

Thursday, December 04, 2008

मुंबई पर हमला यानि देश पर हमला

बहुत हो गया ,अब तो आसुओं के साथ लोगो का खून बहने लगा है । अब सिर्फ़ दबाब बनाने से काम नही चलने वाला या जुबानी जमा खर्च का समय नही है ,कारगर फैसलों पर अमल करने का वक्त है। अब गर्जना होगा । क्योंकि आतंकवादी घटनाओं के बीच का वक्त लगातार घटा जा रहा है । समय आ गया है की हमें अपनी लड़ाई ख़ुद से लड़नी होगी हमारे नेता लोग ऐ .सी. रूम में सो रहे है । इस घटना से साफ़ पता चल गया की देश की गुप्तचर एजेंसीयों में आपसी तालमेल की भारी कमी है वैसे नौ सेना की लापरवाही को भी अनदेखा नही किया जा सकता है क्योकि मुंबई के तटों का जिम्मा तो नौ सेना का ही तो है इस नाते जबाब देही तो नौ सेना की भी है।
आतंकवादी सफल हो रहे है और खुफिया तंत्र असफल हो रहा है चिंता का विषय है ।
आक्रोश के साथ ,बस इतना ही ।

Saturday, October 11, 2008

बिन फेरे हम तेरे

'लिव -इन -रिलेशनशिप' है खुले दरवाजे का पिंजरा ,जब तक मन हो ,रहो वरना तुम अपने रास्ते हम अपने । विवाह एक परम ढोस सामाजिक व्यवस्था है: जिसमे आल -औलाद ,नैहर -ससुराल ,पड़ोस -मौहलहा ,पोथी -पतरा,रीती -रिवाज ,गहना -कपड़े के रूप मैं हर कदम पर समाज खडा है । बिना फेरे लिए लबे समय तक साथ रहने वाले लोगो को विवाह जैसी मान्यता देकर महाराष्ट्र सरकार ने एक तरह से चोर दरवाजे से दूसरे विवाह को मान्यता देने का प्रयास किया है ।
कानून बन जाने से बिना फेरे लिए साथ रहने वाले जोडों को शादी -शुदा दम्पंती के बराबर दर्जा मिल जाएगा और ऐसी महिलायें साथ रहने वाले आदमी की सम्पंती व गुजारा भत्ता की भी हक़दार
होगी ।मलिमथ कमेटी की सिफारिश पर आधारित इस प्रस्ताव में सी आर पी सी की धारा १२५ में उल्लेखित 'पत्नी' शब्द की परिभाषा को संशोधित करने की बात कही गयी है । वैसे भारतीय समाज में शादी की पवित्रता और जरूरत को देखते हुए ऐसे दोहरे रिश्तो से सामाजिक विसंगतिया होने की संभावना हो जायेगी । जब देश में कानूनी रूप से बहु -विवाह पर रोक है । तब दूसरी महिला को 'पत्नी 'का दर्जा कानून की अवहेलना मानी जायेगी ।
यदि पत्नी ही कहलाना है और बिना शादी के साथ रहने वाले महिला और पुरूष दोनों आविवाहित है तब महिला को औपचरिक शादी से पत्नी का दर्जा देने कोई एतराज क्यों ?यदि' लिव -इन -रिलेशनशिप' उन जोडों के बीच है जिनमे पुरूष विवाहहित है तो सामाजिक तरीके से विवाह करने वाली और उसके बच्चों के अधिकारों का क्या होगा वाजिब ही होगा की ऐसे संबंधो को कानूनी मोहर लगने पर पहली पत्नी और उसके बच्चों को मानसिक और आर्थिक आघात लगेगा और 'पत्नी 'जैसी दूसरी महिला को अधिकार और सुरक्षा देने के नाम पर पत्नी को आसुरक्षित माहौल में धकेल दिया जाएगा ।
यह कैसा न्याय है ?
सबसे जरुरी बात यह है की 'लिव -इन -रिलेशनशिप 'को कानून के दायरे में लाने पर विवाह जैसी संस्था की अन्तिम अनिवार्यिता पर प्रश्न चिह्न नही लग जाएगा । कुल मिला कर मेरा मानना है की किसी भी रिश्ते की चाभी परस्पर विश्वास और वचन पर है । जो हमारे बीच होती है और होनी भी चाहिए ।
उसी विश्वास को जीवन पथ पर निभाने वाले साथियों के लिय :-"गुलाब ऐसे ही थोडें गुलाब होता है ,यह बात काटों पे चलने पर समझ मैं आती है । "













Thursday, September 18, 2008

प्रेम पर चोट

"जमाना बदला, पर नही बदला प्रेम से लिया जाने वाला बदला" नॉएडा जनपद मे गुरुवार को प्रेमी जोड़े को मारकर जला दिया समाज के लिए बहुत शर्म नाक बात है । हम लोग तो नई पीड़ी के लोग है । मुझे तो लगता है ना जाने कितने विकास कर लिए लेकिन प्रेम से बदला लेने मे हैवानियत को भी मात कर देते है । वैसे बदला लेने मे एक बात समान है,यहाँ पर लड़का -लड़की मे फर्क नही करते है मरना दोनों को होता है । मैं तो अपने आस-पास घटित घटनाओं के अनुभव के बाद यह कह सकता हूँ की प्यार एक प्यारा सा एहसाश है ।
आप हर उस इंसान से प्यार कर सकते है, जो आपको प्यारा लगता हो । या तो यह भी कह सकते है की प्यार एक विश्वास है उसके के प्रति जिसे आप मन या दिल से पसंद करते हो । इन दोनों का दोष सिर्फ़ इतना ही तो था की वो प्यार करते थे उहने क्या मिला ।मुझे लगता है जब मारने वाले एक हो सकते है तो नई पीड़ी क्यों नही एक हो सकती ? क्या नई पीड़ी ऐसे ही मरती रहेगी। जब कोई चीज छीन रहा तो अपने को भी बचाते सामने वाले को परेसान कर देना होगा । क्या नई पीड़ी बे मतलब की परम्परा में जलती रहेगी ।
काश ऐसा हो की सबको अपनी पसंद का ,प्यार करने वाला जीवन साथी मिले जो आप मर मिटे ।
( किसी रोज सिर्फ़ प्यार पर बात होगी जिसमे हर पहलू बात होगी जहाँ नये लोगो के साथ हमारे अपने बड़ों का साथ भी होगा । )

Wednesday, September 10, 2008

क्यों ना कुछ अपने बारे मैं

आज मेरे एक साथी ने मुझसे कहा बहुत लिखते हो दूसरो के बारे में कभी अपने बारे में भी लिखो तो जाने बड़े बनते हो ईमानदार। बस मैंने ठान लिया अब तो लिखना है अपने बारे में , वैसे अपने बारे में सही -सही लिखना मुश्किल है , प्रयास करने में कोई हर्ज नही । विस्मिल्ला करता हूँ ।
जब मैं लिखना बैठा तो मुझे अपनी ज़िन्दगी के बिताये हर वो पल याद आ गए जो रोकर या हंसकर गुजारे। नानी की हथेलियों का खुरखुरापन भी याद आया जब वो लाड़ से चहेरे पर फेरती थी , अब वो नही रही । ऐसा ही कुछ मेंरे बाबा की बातें है जो बस यादें ही रह गई है । कहते है न की परिवर्तन का नाम ही जीवन है ।
बाकी मेरे घर में वो सब कुछ है जिससे हम लोग खुश रह लेते है ।
सबसे पहले मैं यह बताना चाहता हूँ की मैं ख़ुद को कैसे देखता हूँ और मैं कौन हूँ । जब भीषण गर्मी के बाद तपती धरती और तपते आसमान में काली घटाए हवायों के साथ उमड़ती चली आती है । मैं उन उमड़ती काली घटायों की बारिश की वह पहली बूँद हूँ जो कहती है की अब मुझसेअब नही रहा जाता कुछ कर गुजरने की छटपटाहट है चाहें मंजिल पाऊ या फ़िर रास्ते की गर्मी से बीच में ही सूख जाऊं ----।
वैसे तो जीवन में ऐसा कुछ भी नही किया है जो लिखा या बताये जाने को हो अभी तो बहुत कुछ करना बाकी है । जिसमे अपने बडों के आशिर्बाद के साथ -साथ साथियों के साथ भी तो जरुरी होगा ।
चाँद चाहे कितनी भी कोशिश कर क्यों न कर ले ,वह रात को दिन नही बना सकता । ऐसा ही कुछ तो होता है साथियों के बिना कोई कार्य करना। मेरा तो किसी काम को करने के लिए पहले कदम को आगे करने में विश्वास है , क्योंकि कदम आगे करने पर रास्ता ख़ुद बा ख़ुद निकल आता है । ऐसा मेरा मानना है । मेरे अब तक के जीवन की दो इच्छाए रही है। पहली ,बेह्तर इंसान बनना । दूसरी ,पूरी तरह खुश रह कर अपने आस पास के लोगो को खुश रखना । प्रभु के आशिर्बाद से कुछ हद तक मैं अपने को सफल भी मानता हूँ ।
मैं अत्यन्त सादा और साधारण इंसान हूँ जो अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरणा से कार्य कर रहा हूँ ।
रही बात चेहरे -मोहरे की वो कोई ख़ास नही है । प्रभु ने जान - बूझ कर अच्छा चेहरा मोहरा नही दिया । वैसे मैं कभी -कभी अपने प्रभु से कह लेता हूँ की अरे प्रभु थोड़ा सा अच्छा चेहरा -मोहरा दे दिया होता तो क्या चला जाता ,कुछ हम भी इतरा लेते । हमारा भी तो मन है की कोई हमे अपनेपन का एहसास कराए , हमारी भी तारीफ करे । क्या सारे अपनेपन का ठेका अच्छे चेहरे - मोहरे वालो का है । खैर जाने दीजिये अब इन बातो मैं क्या रखा है ,जो हो गया उसे बदला तो नही जा सकता है । कुल मिला कर मैं बहुत खुश हूँ ,रचनात्मकता मैं विश्वास रखता हूँ क्योंकि जिंदगी बहुत छोटी है अगर हम लोग हर पल अपने चारो ओर नही देखेगे तो कुछ ना कुछ नज़ारा छुट जाएगा । ईश्वर हर पल मेरे साथ है ऐसा मेरा विश्वास है । ईश्वर ने मेरे हर ख्वाब को हकीकत में बदला , लेखन भी उनमे से एक है । ईश्वर का आशिर्बाद ही तो है की मुझ जैसे नालायक को अलौकिक चमत्कार का एहसास कराया । बाकि ईश्वर पर छोड़ दिया है की वो कब तक अलौकिक चमत्कार का एहसास बनाये रखता है बाकि उसकी मर्जी । मैंने अपनी बातचीत में बारिश , गर्मी का जिक्र किया जब बात पूरी कर रहा हूँ तो बरसात का मौसम हो गया है तो उसका असर लेखन पर आ गया है उसके लिए माफ़ कर दे क्योंकि जवान लेखनी से गलती हो जाया करती है । अपने बारे मैं लिखना वाकई मैं काफ़ी मुश्किल है मुझे आज पता चल गया की लोग क्यों अपने बारे में लिखने से बचते है वैसे मैं भी कम नही हूँ मैंने भी कुछ अपनी बातें छुपा ली है अभी मुझे घर मैं रहना है, इतना तो मुझे बेईमान रहना का अधिकार है ।
बस सिर्फ़ अपने अलौकिक चमत्कार के लिए ...............
'फ़िर सावन रुत की पवन चली तुम याद आए ,
फ़िर पत्तो की पायजेब बजी तुम याद आए । { जनाब नासिर काजिम }

Monday, September 08, 2008

बहने

"बहने चिड़िया धूप की , दूर गगन से आयें ,
हर आँगन मेहमान सी , पकडो तो उड़ जाए।" [निदा फाजली ]

"आँगन -आँगन बेटियाँ छांटी -बांटी जाए
जैसे बाले गेहूं की ,पके तो काटी जाए "। (अज्ञात )

Tuesday, August 26, 2008

छोटी बहन

अपनी छोटी बहन के लिए ............
छोटी बहन ,सबसे प्यारी होती है ,
यादो में सबसे मीठी,
कविताओं मे भी सबसे अच्छी ।
बातो मे सबसे निराली ,भावनाओ में कोमल ,
सपनों से नाजुक होती है छोटी बहन ,
दिल -दिमाग ,सासं इन सबसे से
अलग चेहरा लेकर रहती है
छोटी बहन ।

Sunday, August 24, 2008

अपने दोस्त राहुल को........

"कैसे लिख दूँ की लग जायें मेरी उमर भी तुझको ,हम ख़ुद इस उमर के सहारे नही ,हो तो तेरी उमर उतनी जितने की आसमान में तारे "
माँ के सुकुमार और बहन के दुलारे राहुल को जन्मदिन की बहुत -बहुत बधाई । ऊपर वाला तुम्हारे सपने साकार करे।
" आने वाले दिन
मौसमो के दिन हो ,
मुस्कराने के दिन हो ,
जूझने के दिन के बाद ,
जीतने के दिन हो,
हमारे दिन हो ।"

Saturday, August 23, 2008

सुन्दरता


"लड़के का केवल लड़का होना ही काफी होता है । पर कन्या के जन्म में प्रकट करने के लिए उसकी सुन्दरता का विश्लेषण उसके साथ लगाना आवशक हो जाता है।

Thursday, August 21, 2008

दिल की दो लाइन

"पत्थर पे सिर रख कर सो जाने को जी चाहता है ,इतना रुलाया है अपनों ने , अपने पे हंसने को जी चाहता है। "(अज्ञात )