Friday, May 29, 2009

मुझे वर चाहिए..........

उम्र सत्ताईस वर्ष ,कद पॉँच फुट तीन इंच
रंग सांवला ,रूप रिझाने मे असमर्थ
एक हाथ मे एम ए की डिग्री
दूजे मे लाज मेरी
खड़ी मैं मूक ,बोलती है वेदना
की क्या मुझसे कोई ब्याह करेगा ?
दहेज़ की मार से अधमरे ,
मेरे माँ-बाप का उद्धार करेगा ।
बुत बने से हम कहीं आते जाते नही
फ़िर भी लोग घाव देने से बाज आते नही
रोज ही देखने आते है लड़के वाले
मैं दिखाई जाती हूँ ,कई आंखों से बार -बार उघाड़ी जाती हूँ ।
कभी सूरत से ,कभी गाड़ी से ,कभी पैसे से मापी जाती हूँ ।
और हर बार की तरह ही नकारी जाती हूँ ,
मन समझ नही पाता किस बात की सजा पाती हूँ
स्वप्न मे दिखती हैं हम उम्र ,
हजारो लड़कियों की अस्थियाँ
कोई अनब्याही मरी ,कोई दहेज़ की मार से मरी
तो कोई माँ-बाप को मुक्त कर सूली चढी
उनकी दर्द भरी चीखों से कांप जाती हूँ
चिता सी आग से झुलस जाती हूँ
फ़िर भी खत्म नही होती जिजीविषा
इस आस मे साँस चलती है कि
उठेगी मेरी भी कभी डोली ।
साभार : rachna kaar >सुमन सिंह, वाराणसी
यह रचना मुझे बहती हुई नाली मे मिली थी । पानी से उठाते वक्त सोचा भी न था की.........कम से कम मुझे सोचने को मजबूर कर देगी ।

2 comments:

prachi mittal said...

bahut hi pyaari , yatharth aur dil ko chhoo jene waali kavita hai

gyaneshwaari singh said...

बहुत सही लिखा है सुमन जी ने..धन्यवाद आपने इसको हमे पड़ने का मौका दिया..मगर आपने कहा नाली मे मिली ये रचना वो कैसे भला....

एक सार्थक रचना